Accounting Terminology

Introduction

नमस्ते दोस्तों! आज के समय में, लेखांकन एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है, चाहे आप व्यवसायिक क्षेत्र में हों या व्यक्तिगत स्तर पर। लेकिन क्या आपको यह पता है कि लेखांकन के शब्दावली को समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है? धन नियंत्रण, लेखा, और वित्तीय रिपोर्टिंग की भाषा को समझना आपके काम को अधिक सहज और सुगम बना सकता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम लेखांकन की विभिन्न शब्दावली को उदाहरणों के साथ समझेंगे, ताकि आपके लिए यह स्पष्ट हो कि किस प्रकार यह ज्ञान आपकी पेशेवर ग्रोथ में कितना महत्वपूर्ण है। तो बिना किसी देरी के, आइए इस रोमांचक यात्रा में साथ चलें।

Meaning of Accounting Terminology

“लेखांकन शब्दावली” या “Accounting Terminology” का तात्पर्य उन सामान्य शब्दो से है जिनका उपयोग लेखांकन के कामों को समझाने और बात-चित करने में किया जाता है। ये शब्द लेखांकन के नियम, प्रक्रियाएँ, और शैलियों को स्पष्ट करने के लिए होते हैं, जिससे किसी व्यवसायिक संगठन के वित्तीय हालात और संदर्भ को समझा जा सके।

Various Accounting Terminology

1. व्यवसाय (Business) – वे सारे वैध क्रियाएं जो लाभ कमाने के उद्देश्य से किये जातें है, उन्हें व्यवसाय कहते है। इसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, उनका वितरण और उनका खरीद व बिक्री शामिल है। यह एक व्यापक अवधारणा है और इसके निम्न अंग होते है –

i. वाणिज्य (Commerce) – वाणिज्य, उत्पादन और उपभोक्ता के बिच एक आवश्यक कड़ी के रूप में काम करता है। इसमें दो प्रकार की क्रियाएं शामिल है – पहला व्यापार और दूसरा विभिन्न सेवाएं जो व्यापार में सहायक होती है।
a. व्यापार (Trade) – लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं तथा सेवाओं के खरीद व बिक्री को व्यापार कहते है। किसी व्यापार को प्रारम्भ करने का मुख्या उद्देश्य तो लाभ कमाना ही होता है लेकिन इसका परिणाम लाभ या हानि कुछ भी हो सकता है।
b. प्रत्यक्ष सेवाएं  (Direct Services) – यह वे क्रियाएं होती है जो व्यापार में सहायक के रूप में काम करती है। इसमें परिवहन, बैंकिंग, बिमा, भण्डारण और विज्ञापन शामिल है। यह वे क्रियाएं है जो सहायक की भूमिका निभाती है।

ii. उद्योग (Industry) – ‘उद्योग’ से आशय ऐसे व्यावसायिक घर से है जहाँ वस्तुओं का उत्पादन या विनिर्माण (manufacturing) होता है। उद्योगों में तीन प्रकार का माल तैयार होता है- (a) पूँजीगत वस्तुएँ (b) उपभोक्ता वस्तुएँ तथा (c) मध्यवर्ती वस्तुएँ।

2. व्यापार का स्वामी (Proprietor or Owner) – वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जो व्यापार शुरू करता है और व्यापार के संचालन से होने वाले लाभ या हानि का अधिकारी होता है उन्हें ‘व्यापार का स्वामी’ कहते है। दूसरे शब्दों में, व्यापार का स्वामी वह व्यक्ति होता है जो पूँजी लगाकर व्यापार शुरू करता है, व्यापार की देख-रेख करता है, व्यापार में होने वाले जोखिम वहन करता है तथा लाभ या हानि का अधिकारी होता है।

3. पेशा (Profession) – मानव जीवन गुजारा करने के लिए ऐसे कार्य से कमाना, जिसमें विशेष मानसिक योग्यता तथा व्यक्तिगत क्षमता की आव्यशकता होती है, उसे पेशा कहते है। यह विशेष योग्यता रखने वाला व्यक्ति अपनी सेवा प्रदान करने के बदले, विशेष मूल्य लेता है। उदाहरण – डॉक्टर, वकील, इन्जीनियर आदि।

4. पूँजी (Capital) एक व्यवसाय शुरू करने के लिए, शुरू में कुछ धन लगाने की आव्यशकता होती है। यह धनराशि जो किसी व्यावसाय को शुरू करने के लिए लगाया जाता है, उसे पूँजी (Capital) कहते है। यह जरुरी नहीं की पूँजी केवल धन के रूप में ही हो। व्यावसाई, धन के आलावा, माल और संपत्ति भी लगाकर व्यवसाय शुरू करते है।
उदाहरण – राघव ने एक व्यवसाय शुरू किया। इसके लिए उसने ₹50,000 का माल, ₹1,00,000 का एक दुकान (संपत्ति) और ₹10,000 धन लगाय। ये सारा राशि मिला कर कुल ₹1,60,000 का पूँजी उसने व्यवसाय शुरू करने के लिए लगाया।

5. सम्पत्ति (Assets) – व्यवसाय निरंतर चलता रहे और उसमे कोई रूकावट न आए इसके लिए कुछ वस्तुओं की आव्यशकता होती है, जैसे धन, जमीन, मशीन, फर्नीचर अदि। इन्ही वस्तुओं को संपत्ति कहा जाता है।

 6. माल (Goods) – हर व्यवसायई कोई न कोई विशेष वस्तु से व्यवसाय करता है। जैसे एक कपड़े का व्यापारी कपड़े का खरीद-बेच करता है, या एक खिलौने का व्यापारी, खिलौनों का खरीद-बेच करता है। यह विशेष वास्तुओं को माल कहा जाता है। एक बात का विशेष ध्यान रखें की यदि कोई वस्तु, व्यवसाय के प्रयोग के लिए ख़रीदा जाता हो ना की उसे बेचने के लिए, तो उन वस्तुओं को माल नही कहा जाएगा।

7. आहरण या निजी व्यय (Drawings) – व्यापार का स्वामी अपने निजी प्रयोग के लिए जो रोकड़ (cash) या माल अपने व्यापार से निकालता है उसे आहरण या निजी व्यय कहा जाता है। रोकड़ या माल कुछ भी निकालने से व्यापार में लगी पूँजी घट जाती है l

8. दायित्व (Liabilities) – रोज के व्यवसायिक लेन-देन में कुछ लेन-देन उधार वाले होते है। जैसे हम किसी से उधारी पर माल लिये हो, या कुछ पैसे बैंक से उधार ले लिए हो या अन्य कोई लेन-देन जिससे व्यवसाय की देनदारियां बढ़ जाए। ये ऐसे धनराशि को उत्पन्न कर देती है जिन्हे कुछ समय बाद लौटाना होता है। इन्हे हम दाइत्व कहते है।
उदाहरण – चन्द्रवीर ने गौरव से ₹ 4,500 तथा केनरा बैंक से ₹ 8,000 उधार लिए । इस प्रकार चन्द्रवीर पर ₹ 4500 + ₹ 8,000 ₹ = 12,500 चुकाने का दायित्व आ गया।

9. क्रय (Purchases) – बेचने के उद्देश्य से निर्मित माल (Finished goods) को खरीदना अथवा उत्पादों के निर्माण हेतु कच्चा माल (Raw Material) खरीदना ‘क्रय’ कहलाता है। क्रय दो प्रकार का होता है –
(i) नकद क्रय (Cash Purchases) – जब खरीदे गए माल का भुगतान खरीदते समय ही कर दिया जाता है तो इसे ‘नकद क्रय’ कहते हैं l
(ii) उधार क्रय (Credit Purchases) – जब माल उधार खरीदा जाता है तो इसे ‘उधार क्रय’ कहते है।

*नोट – सम्पत्तियों के खरीदने को ‘क्रय’ में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इन्हें प्रयोग के लिए खरीदा जाता है।

10. क्रय वापसी ( Purchases Returns or Returns Outward ) – यदि खरीदे गए माल में से कुछ माल विक्रेता को वापस कर दिया जाता है तो वापस किए गए माल को ‘क्रय वापसी’ कहते हैं। माल को वापस करने के कई कारण हो सकते हैं ; जैसे (i) माल का खराब होना (ii) माल का ऑर्डर से अधिक होना इत्यादि।

11. विक्रय (Sales) – एक व्यापारी द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य से जो माल बेचा जाता है उसे ‘विक्रय‘ कहते हैं। क्रय की तरह विक्रय भी दो प्रकार का होता हैl

(i) नकद विक्रय (Cash Sales) – जब व्यापारी को अपने बिके हुए माल का भुगतान तुरन्त मिल जाता है तो इसे नकद विक्रय कहते हैं।

(ii) उधार विक्रय (Credit Sales) – उधार बेचा गया माल, उधार विक्रय कहलाता है।

12. विक्रय वापसी ( Sales Returns or Returns Inward) – बेचे गए माल का वह भाग जिसे क्रेता किसी कारणवश विक्रेता को वापस कर देता है ‘विक्रय- वापसी’ कहलाता है। क्रेता द्वारा माल कई कारणों से वापस किया जा सकता है; जैसे- (i) माल का नमूने या ऑर्डर के अनुसार न होना (ii) माल का क्षतिग्रस्त होना आदि।

13. प्रमाणक (Vouchers) – वो दस्तावेज या प्रपत्र जो खरीद – बिक्री या धन के लेन-देन का साबुत/प्रमाण दे उन्हें प्रमाणक कहते है। उदाहरण – रसीद, बीजक, कैशमीमो आदि।

14. कमीशन या वर्तन (Commission) – अनेक व्यापारी अपने माल की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रतिनिधियों (Agents) या मध्यस्थों की सेवाओं का उपयोग करते हैं। उनकी सेवाओं के बदले में जो धनराशि उन्हें प्रदान करते हैं उसे ‘कमीशन’ या ‘वर्तन’ कहते हैं ।

15. रहतिया या स्कन्ध या स्टॉक (Stock) – ‘रहतिया या स्टॉक’ शब्द का आशय उस माल से है जो किसी निश्चित तिथि पर बिना बिके रह जाता है।

स्टॉक दो प्रकार का होता है-
(i) अन्तिम स्टॉक – व्यापारी के पास किसी वर्ष के अन्त में जो माल बिना बिका रह जाता है, वह ‘अन्तिम स्टॉक या रहतिया'(Closing Stock) कहलाता है।
(ii) प्रारम्भिक स्टॉक – यही बिना बिका हुआ माल अगले वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में ‘प्रारम्भिक रहतिया या स्टॉक’ (Opening Stock) कहलाता है।
उदाहरण- मान लीजिए 31 मार्च , 2019 को गोविन्द के पास ₹ 9,000 का माल बिना बिका हुआ रह गया। 31 मार्च, 2019 को यह राशि (₹ 9,000) अन्तिम रहतिया तथा 1 अप्रैल, 2019 को प्रारम्भिक रहतिया कहलाएगी।

16. छूट या कटौती (Discount) – जब व्यापारी अपने ग्राहक से वस्तु का पूरा मूल्य न वसूल कर उसके एक भाग को छोड़ देता है तो मूल्य के इस छोड़े गए हिस्से (रियायत) को ‘छूट या बट्ट ‘ या ‘कटौती’ कहते हैं। संक्षेप में, विक्रेता द्वारा अपने ग्राहक को माल के मूल्य में जो कमी दी जाती है उसे ‘छूट’ कहते हैं।

छूट के प्रकार (Kinds of Discount) –
व्यापारी अपने ग्राहकों को निम्न प्रकार की छूट देते हैं –
(i) व्यापारिक छूट (Trade Discount) – यह एक प्रकार की परम्परागत छूट होती है जो व्यापार की प्रथा के अनुसार व्यापारी द्वारा माल बेचते समय खुद ही काट दी जाती है, चाहे विक्री नकद की जा रही हो अथवा उधार– उदाहरण- यदि कोई पुस्तक विक्रेता पुस्तकों पर 10% छूट देता है और किसी पुस्तक पर ₹80 मूल्य छपा हुआ है तो विक्रेता ग्राहक से ₹72 वसूल करेगा। व्यापारिक छूट का लेखा हिसाब-किताब की पुस्तकों में नहीं किया जाता क्योंकि इसे कैशमीमो या बीजक में से ही घटा दिया जाता है। हिसाब-किताब में ₹80 के जगह ₹72 ही विक्री के रूप में लिखे जाएंगे।

(ii) नकद छूट (Cash Discount) – यह छूट उन ग्राहकों को दी जाती है जो माल के मूल्य का भुगतान एक निश्चित तारीख पर या उससे पहले कर देते हैं। ऐसी छूट ग्राहक को शीघ्र भुगतान करने हेतु प्रेरित करने के लिए दी जाती है। इस छूट का लेखा हिसाब-किताब पुस्तकों में किया जाता है। बीजक में नकद छूट का उल्लेख सामान्यतः शर्त के रूप में तो कर दिया जाता है, किन्तु इसे बीजक के कुल मूल्य में से घटाया नहीं जाता। ऐसी छूट प्राय: कुल भुगतान के प्रतिशत में होती है।

17. जीवित स्कन्ध या पशुधन (Live – stock) – किसी व्यवसाय, जैसे- सर्कस, में सम्पत्ति के रूप में जिन जीवित पशुओं, बैल, घोड़े आदि का प्रयोग किया जाता है उन्हें ‘जीवित स्कन्ध’ कहा जाता है।

18. ऋणी या देनदार (Debtor) – जिस व्यक्ति अथवा फर्म पर व्यापारी का कुछ रुपया बाकी रहता है वह व्यापार का देनदार या ऋणी कहलाता है। यदि किसी ने व्यापारी से उधार माल खरीदा है या धनराशि उधार ली है तो वह व्यापार का ऋणी या देनदार कहलाएगा।

उदाहरण- मान लीजिए चन्द्रकान्त ने विजय से ₹9,500 का माल उधार खरीदा तो चन्द्रकान्त विजय का देनदार (ऋणी) कहलाएगा। किसी व्यवसाय के लिए देनदार सम्पत्ति होता है।

19. लेनदार या ऋणदाता (Creditor) – वे व्यक्ति, फर्म या कम्पनी जिनका व्यापारी पर कुछ रुपया निकलता है व्यापार के ऋणदाता अथवा ‘लेनदार ‘ कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस व्यक्ति, फर्म या कम्पनी से व्यापारी ने उधार माल खरीदा है, वे व्यापार के लेनदार होते है।

 20. बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdraft) – कभी-कभी बैंक अपने सम्मानित ग्राहक को उसके द्वारा जमा की गई धनराशि से अधिक राशि निकालने की सुविधा प्रदान करता है जमा राशि पर निकाली गई राशि का आधिक्य (दोनों राशियों का अन्तर) ही ‘बैंक अधिविकर्ष’ कहलाता है। ऐसी राशि (अधिविकर्ष) पर बैंक ग्राहक से ब्याज भी वसूल करता है।

21. अप्राप्य या अशोध्य ऋण (Bad Debts)- वे धनराशियाँ जो किसी कारण वसूल नहीं हो पातीं तथा भविष्य में भी उनके वसूल होने की कोई आशा न हो, ‘अप्राप्य या दूबत या अशोध्य ऋण’ कहलाती हैं। ऐसी राशियाँ व्यापार की हानि होती हैं।

22. खाता (Account)- जब किसी वस्तु, सम्पत्ति, आय, व्यय, सेवा या व्यक्ति से सम्बन्धित सौदे छाँटकर एक स्थान पर लिख लिए जाते हैं तो यह उस वस्तु, सम्पत्ति, सेवा या व्यक्ति विशेष का ‘खाता‘ कहलाता है। खाते तीन प्रकार के होते हैं-
(i) व्यक्तिगत खात।
(ii) वास्तविक या साम्पत्तिक खाते।
(iii) अवास्तविक या नाममात्र के खाते।
खातो को और भी अच्छे से जानने के लिए 👉इस ब्लॉग को जरूर पढ़ें

 23. लेखे की पुस्तकें (Books of Accounts) – ऐसी पुस्तकें (बहियाँ) या रजिस्टर जिनमें व्यावसायिक लेन-देनों को लिखा जाता है ‘लेखे की पुस्तकें’ कहलाती है जैसे- रोजनामचा, खाताबही, रोकड़ बही, सहायक बहियाँ इत्यादि।

 24. लेखा या प्रविष्टि (Entry)- किसी सौदे अथवा व्यापारिक लेन-देन को लेखा-पुस्तकों में नियमबद्ध ढंग से लिखने के कार्य को ‘लेखा करना’ या ‘प्रविष्टि’ करना कहते हैं।

25. ऋणी धनी या नाम व जमा (Debit and Credit) – ‘डेबिट’ को हिन्दी में ऋणी तथा ‘क्रेडिट’ को धनी कहते हैं। दोहरा लेखा प्रणाली में प्रत्येक लेन-देन को दो रूप या पक्षों में लिखा जाता है-
(i) डेबिट (Debit) या ऋणी या नाम,
(ii) क्रेडिट (Credit) या धनी या जमा
इसलिए प्रत्येक खाते के दो पक्ष होते हैं –
खाते का बायाँ भाग ‘डेबिट’ तथा दाहिना भाग ‘क्रेडिट’ कहलाता है।

 26. व्यय (Expenses) – व्यवसाय चलाने के लिए निरंतर कुछ न कुछ खर्चे होते रहते है। मशीन खरीदना, या मशीन बनवाना, मजदूरों को वेतन देना, बिजली के बिल का भुगतान करना, और अन्य कई तरह के खर्चे। इन्ही खर्चो को व्यय कहा जाता है।

व्यय दो प्रकार के होते है –
i) पूँजीगत व्यय ( Capital Expenditure ) – जो खर्चे हम व्यवसाय के संपत्ति को बढ़ाने के लिए करते है, उन्हें पूंजीगत व्यय कहा जाता है। जैसे – मशीन खरीदना, जमीं या बिल्डिंग खरीदना, बिल्डिंग का दोबारा निर्माण कराने में हुआ खर्च, आदि। ये ऐसे खर्चे होते है जिनका लाभ व्यवसाय में लम्बे समय तक मिलता है या जिनका लाभ एक साल से अधिक मिलता है।
ii ) आयगत व्यय ( Revenue Expenditure ) – कोई भी ऐसा व्यय जिसका समस्त लाभ एक साल के अंदर-अंदर ही प्राप्त हो जाता है, ‘आयगत व्यय ‘ कहलाता है।

27. आय (Income) – आगम में से व्यय को घटाकर जो राशि शेष बचती है उसे आ कहा जाता है । उदाहरणार्थ , किसी समयावधि में कुल विक्रय मूल्य ₹ 9 लाख है , बेचे गए माल की कुल लागत ₹ 6 लाख है तो ₹ 9 लाख को आगम कहा जाएगा , ₹ 6 लाख को व्यय कहेंगे तथा शेष ₹ 3 लाख आय होगी ( Income = Revenue Expenses ) आय , आगम से भिन्न होती है बेचे गए माल के कुल विक्रय – मूल्य ‘आगम ‘ ( Revenue ) कहते हैं । बेचे गए माल की लागत को ‘ व्यय ‘ कहते हैं । यदि व्यय से आगम अधिक है तो आगम एवं व्यय के अन्तर को ‘ आय ‘ कहते हैं l
(आय= आगम – व्यय)

28. हानि ( Loss ) – किसी समयावधि में व्यवसाय से प्राप्त समस्त आगम से यदि व्यय अधिक होते हैं तो दोनों की अन्तर राशि को ‘ हानि कहते हैं।
[हानि = व्यय आगम (Loss = Expenses Revenue)]

29. दिवालिया ( Insolvent ) – एक ऐसा व्यवसायी (businessman) , जिसके दायित्व उसकी सम्पत्तियों की तुलना में अधिक हो और वह उन दायित्वों का भुगतान करने में असमर्थ हो , दिवालिया कहलाता है ऐसी स्थिति में व्यवसायी की सम्पत्तियों उसके दायित्वों से कम होती है।

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Summary

वित्तीय जानकारी की व्याख्या करने, सूचित व्यावसायिक निर्णय लेने और हितधारकों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए लेखांकन शब्दावली को समझना आवश्यक है। परिसंपत्तियों, देनदारियों, राजस्व, व्यय और मूल्यह्रास जैसे प्रमुख लेखांकन शब्दों से खुद को परिचित करके, आप आत्मविश्वास और स्पष्टता के साथ वित्त की दुनिया में नेविगेट कर सकते हैं।

FAQs

  1. संपत्ति और देनदारियों के बीच क्या अंतर है?
    उत्तर- संपत्तियां किसी कंपनी के स्वामित्व वाले संसाधन हैं, जबकि देनदारियां
    किसी कंपनी द्वारा बाहरी पार्टियों पर बकाया ऋण हैं।
  2. राजस्व व्यय से किस प्रकार भिन्न है?
    उत्तर-राजस्व व्यावसायिक गतिविधियों से अर्जित आय का प्रतिनिधित्व करता है,
    जबकि व्यय उस राजस्व को उत्पन्न करने के लिए की गई लागत है।
  3. लेखांकन में मूल्यह्रास क्यों महत्वपूर्ण है?
    उत्तर- मूल्यह्रास संपत्तियों की लागत को उनके उपयोगी जीवन में आवंटित करने
    में मदद करता है और वित्तीय विवरणों पर उनके मूल्य को सटीक रूप से दर्शाता
    है।
  4. वित्तीय विवरणों में संपत्ति और देनदारियां कहां रिपोर्ट की जाती हैं?
    उत्तर-संपत्ति और देनदारियां दोनों कंपनी की बैलेंस शीट पर रिपोर्ट की जाती हैं,
    जो इसकी वित्तीय स्थिति का एक स्नैपशॉट प्रदान करती हैं।
  5. लेखांकन शब्दावली को समझने से व्यवसाय को किस प्रकार लाभ होता है?
    उत्तर-लेखांकन शब्दावली को समझने से व्यवसायों को वित्तीय डेटा का विश्लेषण
    करने, रणनीतिक निर्णय लेने और हितधारकों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने
    में मदद मिलती है।

याद रखें, लेखांकन शब्दावली में महारत हासिल करना एक मूल्यवान कौशल है जो आपकी वित्तीय साक्षरता को बढ़ा सकता है और आपको सूचित वित्तीय निर्णय लेने के लिए सशक्त बना सकता है। धन्यवाद !

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